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श्लोक 15
श्लोक
7.50.15
ऋषेस्तु वचनं श्रुत्वा मामाह पुरुषर्षभ:।
सूत न क्वचिदेवं ते वक्तव्यं जनसंनिधौ॥ १५॥
अनुवाद
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दुर्वासा मुनि के वचनों को सुनकर पुरुष प्रधान दशरथ ने मुझसे कहा, "सूत! तुम्हें दूसरे लोगों के सामने इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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