श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 50: लक्ष्मण और सुमन्त्र की बातचीत  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.50.15 
 
 
ऋषेस्तु वचनं श्रुत्वा मामाह पुरुषर्षभ:।
सूत न क्वचिदेवं ते वक्तव्यं जनसंनिधौ॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  दुर्वासा मुनि के वचनों को सुनकर पुरुष प्रधान दशरथ ने मुझसे कहा, "सूत! तुम्हें दूसरे लोगों के सामने इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए।"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.