अब उन्हें कोई भी अपना रक्षक नहीं दिखाई देता था। अतः यश को धारण करनेवाली वे यशस्विनी सती सीता दुःख के भारी बोझ से दबकर चिंताग्रस्त हो उस वन में जोर-जोर से रोने लगीं, जहाँ मयूरों के कलनाद गूँज रहे थे। उन्होंने अपने पति श्री राम को भी नहीं देखा।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डेऽष्टचत्वारिंश: सर्ग: ॥ ४ ८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें अड़तालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ४ ८॥