श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 48: सीता का दुःखपूर्ण वचन, श्रीराम के लिये उनका संदेश, लक्ष्मण का जाना और सीता का रोना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  7.48.26 
 
 
सा दु:खभारावनता यशस्विनी
यशोधरा नाथमपश्यती सती।
रुरोद सा बर्हिणनादिते वने
महास्वनं दु:खपरायणा सती॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  अब उन्हें कोई भी अपना रक्षक नहीं दिखाई देता था। अतः यश को धारण करनेवाली वे यशस्विनी सती सीता दुःख के भारी बोझ से दबकर चिंताग्रस्त हो उस वन में जोर-जोर से रोने लगीं, जहाँ मयूरों के कलनाद गूँज रहे थे। उन्होंने अपने पति श्री राम को भी नहीं देखा।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डेऽष्टचत्वारिंश: सर्ग: ॥ ४ ८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें अड़तालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ४ ८॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.