हृद्गतं मे महच्छल्यं यस्मादार्येण धीमता।
अस्मिन्निमित्ते वैदेहि लोकस्य वचनीकृत:॥ ४॥
अनुवाद
वेदह नन्दिनी! मेरे हृदय में सबसे बड़ा काँटा यही चुभ रहा है क्योंकि आज रघुनाथजी ने बुद्धिमान् होकर भी मुझे वह काम सौंपा है, जिसके कारण संसार में मेरी बड़ी निन्दा होगी।