श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 46: लक्ष्मण का सीता को रथ पर बिठाकर उन्हें वन में छोड़ने के लिये ले जाना और गङ्गाजी के तट पर पहुँचना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  7.46.33 
 
 
तितीर्षुर्लक्ष्मणो गङ्गां शुभां नावमुपारुहत्।
गङ्गां संतारयामास लक्ष्मणस्तां समाहित:॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मणजी सीताजी के साथ उस सुन्दर नाव पर बैठकर गङ्गाजी को पार करने की इच्छा रखते थे। उन्होंने बड़ी सावधानी के साथ सीताजी को गङ्गाजी के दूसरी ओर पहुँचाया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे षट्चत्वारिंश: सर्ग: ॥ ४ ६॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें छियालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ४ ६॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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