श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 46: लक्ष्मण का सीता को रथ पर बिठाकर उन्हें वन में छोड़ने के लिये ले जाना और गङ्गाजी के तट पर पहुँचना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  7.46.28 
 
 
ममापि दयितो रामो जीवितादपि लक्ष्मण।
न चाहमेवं शोचामि मैवं त्वं बालिशो भव॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘लक्ष्मण! श्रीराम तो मुझे भी अपने प्राणोंसे बढ़कर प्रिय हैं; परंतु मैं तो इस प्रकार शोक नहीं कर रही हूँ। तुम ऐसे नादान न बनो॥ २८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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