तत्र मे बुद्धिरुत्पन्ना जनकस्य सुतां प्रति।
अत्रोषितामिमां सीतामानयेयं कथं पुरीम्॥ ६॥
अनुवाद
तदनंतर लंका में ही मेरे चित्त में जानकी के विषय में यह धारणा उत्पन्न हुई थी कि वे इतने दिनों तक यहाँ रहने पर भी, मैं उन्हें किस प्रकार राजधानी में ले जा सकूंगा।