श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 42: अशोकवनिका में श्रीराम और सीता का विहार, गर्भिणी सीता का तपोवन देखने की इच्छा प्रकट करना और श्रीराम का इसके लिये स्वीकृति देना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  7.42.6 
 
 
सर्वदा कुसुमै रम्यै: फलवद्भिर्मनोरमै:।
दिव्यगन्धरसोपेतैस्तरुणाङ्कुरपल्लवै:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  सर्वदा फूल देनेवाले रमणीय और मनमोहक वृक्ष, दिव्य सुगंध और स्वाद से युक्त, नए अंकुरों और पत्तियों से सुशोभित होकर, उस अशोकवन की शोभा में चार चाँद लगा रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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