श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 42: अशोकवनिका में श्रीराम और सीता का विहार, गर्भिणी सीता का तपोवन देखने की इच्छा प्रकट करना और श्रीराम का इसके लिये स्वीकृति देना  »  श्लोक 16-18h
 
 
श्लोक  7.42.16-18h 
 
 
बह्वासनगृहोपेतां लतागृहसमावृताम्॥ १६॥
अशोकवनिकां स्फीतां प्रविश्य रघुनन्दन:।
आसने च शुभाकारे पुष्पप्रकरभूषिते॥ १७॥
कुथास्तरणसंस्तीर्णे राम: संनिषसाद ह।
 
 
अनुवाद
 
  वहाँ अनेक ऐसे घर बने थे जिनके अंदर बैठने के लिए कालीन बिछे बहुत सारे आसन सजाए गए थे। वह वाटिका कई लता मंडपों से सुशोभित दिखाई दे रही थी। उस समृद्धिशाली अशोक वाटिका में प्रवेश करके रघुकुल नंदन श्रीराम ने एक सुंदर आसन पर बैठे। वह आसन फूलों से सजाया हुआ था और उस पर कालीन बिछा हुआ था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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