श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 40: वानरों, रीछों और राक्षसों की बिदार्इ  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  7.40.30 
 
 
कृतप्रसादास्तेनैवं राघवेण महात्मना।
जग्मु: स्वं स्वं गृहं सर्वे देही देहमिव त्यजन्॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  निश्चित ही, जब महात्मा श्रीरघुनाथ जी ने इस तरह प्रसन्नतापूर्वक और कृपा करके विदा दी तब वे सब वानर उसी प्रकार विवशता से अपने-अपने घर को चले गये जिस प्रकार शरीर छोड़ने के पश्चात आत्मा विवशता से ही परलोक को प्राप्त करती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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