श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 40: वानरों, रीछों और राक्षसों की बिदार्इ  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  7.40.25 
 
 
ततोऽस्य हारं चन्द्राभं मुच्य कण्ठात् स राघव:।
वैदूर्यतरलं कण्ठे बबन्ध च हनूमत:॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनन्तर श्रीरघुनाथजी ने अपने गले से एक चन्द्रमा के समान दमकता हार उतारा, जिसके मध्य में वैदूर्य मणि जड़ी हुई थी। उन्होंने उसे हनुमानजी के गले में पहना दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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