कपिश्रेष्ठ! मैं तो बस यही चाहता हूँ कि तुमने जो-जो उपकार किये हैं, वे सब मेरे शरीर में ही पच जायें और उनका बदला चुकाने का मुझे कभी मौका ही न मिले। क्योंकि पुरुष में उपकार का बदला चुकाने की योग्यता तभी आती है जब वह आपत्तिकाल में हो (मैं नहीं चाहता कि तुम भी संकट में पड़ो और मैं तुम्हारे उपकार का बदला चुकाऊँ)।