एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:।
चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका॥ २१॥
तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरेऽप्यसवस्तथा।
लोका हि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति मे कथा:॥ २२॥
अनुवाद
कपिश्रेष्ठ! ऐसा होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। जब तक संसार में मेरी कथा प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे। जब तक यह लोक बना रहेगा, तब तक मेरी कथाएँ भी कायम रहेंगी।