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श्लोक 17
श्लोक
7.40.17
यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले।
तावच्छरीरे वत्स्यन्तु प्राणा मम न संशय:॥ १७॥
अनुवाद
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वायु पुत्र! जबतक श्रीराम की कथा इस पृथ्वी पर प्रचलित रहेगी, तब तक निःसंदेह मेरे प्राण इस शरीर में निवास करते रहेंगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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