श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 40: वानरों, रीछों और राक्षसों की बिदार्इ  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  7.40.16 
 
 
स्नेहो मे परमो राजंस्त्वयि तिष्ठतु नित्यदा।
भक्तिश्च नियता वीर भावो नान्यत्र गच्छतु॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  महाराज! आपके प्रति मेरा अनंत स्नेह हमेशा बना रहे। वीर! आपमें ही मेरी अटूट भक्ति बनी रहे। आपके अलावा कहीं और मेरा हार्दिक प्रेम न हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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