श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 39: राजाओं का श्रीराम के लिये भेंट देना और श्रीराम का वह सब लेकर अपने मित्रों, वानरों, रीछों और राक्षसों को बाँट देना तथा वानर आदि का वहाँ सुखपूर्वक रहना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  7.39.25 
 
 
एवमुक्त्वा ददौ तेभ्यो भूषणानि यथार्हत:।
वज्राणि च महार्हाणि सस्वजे च नरर्षभ:॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरघुनाथजी ने ऐसा कहकर उन्हें उचित आभूषण और बहुमूल्य हीरे भेंट किए और उनका आलिंगन किया। वीरशिरोमणि श्रीरघुनाथजी ने उन्हें वज्र और अत्यंत कीमती आभूषण भी प्रदान किये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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