एवमुक्त्वा ददौ तेभ्यो भूषणानि यथार्हत:।
वज्राणि च महार्हाणि सस्वजे च नरर्षभ:॥ २५॥
अनुवाद
श्रीरघुनाथजी ने ऐसा कहकर उन्हें उचित आभूषण और बहुमूल्य हीरे भेंट किए और उनका आलिंगन किया। वीरशिरोमणि श्रीरघुनाथजी ने उन्हें वज्र और अत्यंत कीमती आभूषण भी प्रदान किये।