श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 38: श्रीराम के द्वारा राजा जनक, युधाजित्, प्रतर्दन तथा अन्य नरेशों की विदार्इ  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  7.38.13 
 
 
युधाजित् तु तथेत्याह गमनं प्रति राघव।
रत्नानि च धनं चैव त्वय्येवाक्षय्यमस्त्विति॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  तब युधाजित् ने ‘तथास्तु’ कहकर श्रीरामचन्द्रजीकी बात मान ली और कहा—‘रघुनन्दन! ये रत्न और धन सब तुम्हारे ही पास अक्षयरूपसे रहें’॥ १३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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