श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 36: ब्रह्मा आदि देवताओं का हनुमान्जी को जीवित करके नाना प्रकारके वरदान देना और वायु का उन्हें लेकर अञ्जना के घर जाना, ऋषियों के शाप से हनुमान्जी को अपने बल की विस्मृति, श्रीराम का अगस्त्य आदि ऋषियों से अपने यज्ञ में पधारने के लिये प्रस्ताव करके उन्हें विदा देना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.36.15 
 
 
वरुणश्च वरं प्रादान्नास्य मृत्युर्भविष्यति।
वर्षायुतशतेनापि मत्पाशादुदकादपि॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  वरुण ने वर देते हुए कहा, "इस बालक की मृत्यु मेरे पाश और जल से भी नहीं होगी, चाहे वह दस लाख वर्ष का ही क्यों न हो जाए।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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