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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 36: ब्रह्मा आदि देवताओं का हनुमान्जी को जीवित करके नाना प्रकारके वरदान देना और वायु का उन्हें लेकर अञ्जना के घर जाना, ऋषियों के शाप से हनुमान्जी को अपने बल की विस्मृति, श्रीराम का अगस्त्य आदि ऋषियों से अपने यज्ञ में पधारने के लिये प्रस्ताव करके उन्हें विदा देना
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श्लोक 11
श्लोक
7.36.11
मत्करोत्सृष्टवज्रेण हनुरस्य यथा हत:।
नाम्ना वै कपिशार्दूलो भविता हनुमानिति॥ ११॥
अनुवाद
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‘मेरे हाथसे छूटे हुए वज्रके द्वारा इस बालककी हनु (ठुड्डी) टूट गयी थी; इसलिये इस कपिश्रेष्ठका नाम ‘हनुमान्’ होगा॥ ११॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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