श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 35: हनुमान्जी की उत्पत्ति, शैशवावस्था में इनका सूर्य, राहु और ऐरावत पर आक्रमण, इन्द्र के वज्र से इनकी मूर्च्छा, वायु के कोप से संसार के प्राणियों को कष्ट और उन्हें प्रसन्न करने के लिये देवताओं सहित ब्रह्माजी का उनके पास जाना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  7.35.9 
 
 
एतस्य बाहुवीर्येण लङ्का सीता च लक्ष्मण:।
प्राप्ता मया जयश्चैव राज्यं मित्राणि बान्धवा:॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  मुनिश्रेष्ठ! मैंने इसी हनुमान के बाहुबल के कारण लंका, सीता, लक्ष्मण, विजय, अयोध्या का राज्य, मित्र और बंधुओं को प्राप्त किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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