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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 35: हनुमान्जी की उत्पत्ति, शैशवावस्था में इनका सूर्य, राहु और ऐरावत पर आक्रमण, इन्द्र के वज्र से इनकी मूर्च्छा, वायु के कोप से संसार के प्राणियों को कष्ट और उन्हें प्रसन्न करने के लिये देवताओं सहित ब्रह्माजी का उनके पास जाना
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श्लोक 61-62h
श्लोक
7.35.61-62h
वायु: प्राण: सुखं वायुर्वायु: सर्वमिदं जगत्॥ ६१॥
वायुना सम्परित्यक्तं न सुखं विन्दते जगत्।
अनुवाद
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वायु ही जीवन का सार है। वायु ही सुख है और यह सम्पूर्ण संसार वायु से ही बना है। वायु के बिना संसार कभी भी सुखी नहीं रह सकता। आज ही वायु ने संसार को छोड़ दिया है, और इसी के साथ संसार का जीवन भी समाप्त हो गया है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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