श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 35: हनुमान्जी की उत्पत्ति, शैशवावस्था में इनका सूर्य, राहु और ऐरावत पर आक्रमण, इन्द्र के वज्र से इनकी मूर्च्छा, वायु के कोप से संसार के प्राणियों को कष्ट और उन्हें प्रसन्न करने के लिये देवताओं सहित ब्रह्माजी का उनके पास जाना  »  श्लोक 57-58h
 
 
श्लोक  7.35.57-58h 
 
 
एतत् प्रजानां श्रुत्वा तु प्रजानाथ: प्रजापति:॥ ५७॥
कारणादिति चोक्त्वासौ प्रजा: पुनरभाषत।
 
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी ने प्रजा की बात सुनकर कहा, "इसमें कोई कारण अवश्य है।" ऐसा कहकर वे फिर प्रजा से बोले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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