वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 7: उत्तर काण्ड
»
सर्ग 35: हनुमान्जी की उत्पत्ति, शैशवावस्था में इनका सूर्य, राहु और ऐरावत पर आक्रमण, इन्द्र के वज्र से इनकी मूर्च्छा, वायु के कोप से संसार के प्राणियों को कष्ट और उन्हें प्रसन्न करने के लिये देवताओं सहित ब्रह्माजी का उनके पास जाना
»
श्लोक 57-58h
श्लोक
7.35.57-58h
एतत् प्रजानां श्रुत्वा तु प्रजानाथ: प्रजापति:॥ ५७॥
कारणादिति चोक्त्वासौ प्रजा: पुनरभाषत।
अनुवाद
play_arrowpause
ब्रह्माजी ने प्रजा की बात सुनकर कहा, "इसमें कोई कारण अवश्य है।" ऐसा कहकर वे फिर प्रजा से बोले।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.