श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 35: हनुमान्जी की उत्पत्ति, शैशवावस्था में इनका सूर्य, राहु और ऐरावत पर आक्रमण, इन्द्र के वज्र से इनकी मूर्च्छा, वायु के कोप से संसार के प्राणियों को कष्ट और उन्हें प्रसन्न करने के लिये देवताओं सहित ब्रह्माजी का उनके पास जाना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  7.35.4 
 
 
दृष्ट्वैव सागरं वीक्ष्य सीदन्तीं कपिवाहिनीम्।
समाश्वास्य महाबाहुर्योजनानां शतं प्लुत:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  देखते ही देखते समंदर को निहारकर वानर सेना घबरा उठी - यह देखकर महाबाहु वीर हनुमान ने उन्हें धैर्य बँधाते हुए एक ही छलाँग में सौ योजन का समुद्र लाँघ लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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