श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 35: हनुमान्जी की उत्पत्ति, शैशवावस्था में इनका सूर्य, राहु और ऐरावत पर आक्रमण, इन्द्र के वज्र से इनकी मूर्च्छा, वायु के कोप से संसार के प्राणियों को कष्ट और उन्हें प्रसन्न करने के लिये देवताओं सहित ब्रह्माजी का उनके पास जाना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  7.35.12 
 
 
नहि वेदितवान् मन्ये हनूमानात्मनो बलम्।
यद् दृष्टवाञ्जीवितेष्टं क्लिश्यन्तं वानराधिपम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  मेरे विचार से उस समय हनुमान जी को अपनी शक्ति का अहसास ही नहीं था। इसी कारण वे अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय वानरराज सुग्रीव को कष्ट में देखते रहे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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