श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 35: हनुमान्जी की उत्पत्ति, शैशवावस्था में इनका सूर्य, राहु और ऐरावत पर आक्रमण, इन्द्र के वज्र से इनकी मूर्च्छा, वायु के कोप से संसार के प्राणियों को कष्ट और उन्हें प्रसन्न करने के लिये देवताओं सहित ब्रह्माजी का उनके पास जाना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  7.35.10 
 
 
हनूमान् यदि मे न स्याद् वानराधिपते: सखा।
प्रवृत्तिमपि को वेत्तुं जानक्या: शक्तिमान् भवेत्॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  यदि मुझे वानरराज सुग्रीव के मित्र हनुमान नहीं मिलते तो जानकी का पता लगाने में और कौन समर्थ हो सकता था?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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