श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 34: वाली के द्वारा रावण का पराभव तथा रावण का उन्हें अपना मित्र बनाना  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  7.34.40 
 
 
सोऽहं दृष्टबलस्तुभ्यमिच्छामि हरिपुङ्गव।
त्वया सह चिरं सख्यं सुस्निग्धं पावकाग्रत:॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  कपि श्रेष्ठ! मैंने तुम्हारा बल देख लिया है। अब मैं अग्नि को साक्षी मानकर तुम्हारे साथ चिरकाल तक स्नेहपूर्ण मित्रता करना चाहता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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