श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 34: वाली के द्वारा रावण का पराभव तथा रावण का उन्हें अपना मित्र बनाना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  7.34.37 
 
 
अहो बलमहो वीर्यमहो गाम्भीर्यमेव च।
येनाहं पशुवद् गृह्य भ्रामितश्चतुरोऽर्णवान्॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  अहो बल ! अहो वीर्य ! अहो गाम्भीर्य ! आपमें अद्भुत शक्ति, अदम्य साहस और गंभीरता है। आपने मुझे जानवर की तरह पकड़कर चारों महासागरों की परिक्रमा कराई है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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