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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 34: वाली के द्वारा रावण का पराभव तथा रावण का उन्हें अपना मित्र बनाना
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श्लोक 18
श्लोक
7.34.18
इत्येवं मतिमास्थाय वाली मौनमुपास्थित:।
जपन् वै नैगमान् मन्त्रांस्तस्थौ पर्वतराडिव॥ १८॥
अनुवाद
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ऐसा निश्चय करके वाली अपने कानों को ढँककर मौनव्रत धारण करके वैदिक मन्त्रों का जप करते हुए गिरिराज सुमेरु पर्वत के समान अटल होकर खड़े हो गए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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