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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 34: वाली के द्वारा रावण का पराभव तथा रावण का उन्हें अपना मित्र बनाना
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श्लोक 17
श्लोक
7.34.17
द्रक्ष्यन्त्यरिं ममाङ्कस्थं स्रंसदूरुकराम्बरम्।
लम्बमानं दशग्रीवं गरुडस्येव पन्नगम्॥ १७॥
अनुवाद
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इसकी जाँघें, हाथ, पैर और कपड़े फिसल रहे होंगे। यह मेरी कांख में दबा होगा और उस स्थिति में लोग मेरे शत्रु को गरुड़ के पंजों में दबे हुए साँप की तरह लटकते हुए देखेंगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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