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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 33: पुलस्त्यजी का रावण को अर्जुन की कैद से छुटकारा दिलाना
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श्लोक 19
श्लोक
7.33.19
पुलस्त्येनापि संत्यक्तो राक्षसेन्द्र: प्रतापवान्।
परिष्वक्त: कृतातिथ्यो लज्जमानो विनिर्जित:॥ १९॥
अनुवाद
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राक्षसराज रावण को पुलस्त्य ऋषि ने हृदय से लगाया, परन्तु वह अपनी पराजय से लज्जित और अपमानित था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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