श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 32: अर्जुन की भुजाओं से नर्मदा के प्रवाह का अवरुद्ध होना, रावण के पुष्पोपहार का बह जाना, फिर रावण आदि निशाचरों का अर्जुन के साथ युद्ध तथा अर्जुन का रावण को कैद करके अपने नगर में ले जाना  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  7.32.43 
 
 
ततोऽस्य मुसलं घोरं लोहबद्धं मदोद्धत:।
प्रहस्त: प्रेषयन् क्रुद्धो ररास च यथान्तक:॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘मदसे उद्दण्ड हुए प्रहस्तने कुपित हो अर्जुनपर लोहेसे मढ़ा हुआ एक भयंकर मूसल चलाया और कालके समान भीषण गर्जना की॥ ४३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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