श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 32: अर्जुन की भुजाओं से नर्मदा के प्रवाह का अवरुद्ध होना, रावण के पुष्पोपहार का बह जाना, फिर रावण आदि निशाचरों का अर्जुन के साथ युद्ध तथा अर्जुन का रावण को कैद करके अपने नगर में ले जाना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.32.15 
 
 
नदीं बाहुसहस्रेण रुन्धन्तमरिमर्दनम्।
गिरिं पादसहस्रेण रुन्धन्तमिव मेदिनीम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  मर्दनकारी शत्रुओं का संहार करने वाला वह वीर अपनी सहस्र भुजाओं से नदी के वेग को रोककर और सहस्रों चरणों से पृथ्वी को थामे रखता हुआ, पर्वत के समान शोभा पाता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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