श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 32: अर्जुन की भुजाओं से नर्मदा के प्रवाह का अवरुद्ध होना, रावण के पुष्पोपहार का बह जाना, फिर रावण आदि निशाचरों का अर्जुन के साथ युद्ध तथा अर्जुन का रावण को कैद करके अपने नगर में ले जाना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  7.32.10 
 
 
ततोऽनुद्‍भ्रान्तशकुनां स्वभावे परमे स्थिताम्।
निर्विकाराङ्गनाभासामपश्यद् रावणो नदीम्॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण ने देखा कि नदी के किनारे वाले वृक्षों पर रहने वाले पक्षी बिल्कुल भी घबराए हुए नहीं थे। नदी अपनी स्वाभाविक स्थिति में थी, उसका पानी पहले जैसा ही साफ और निर्मल था। उसमें वर्षा ऋतु की बाढ़ के कारण होने वाली गंदगी और विकार बिल्कुल भी नहीं थे। रावण ने उस नदी को विकारों से रहित हृदय वाली स्त्री के समान देखा।
 
 
 
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