श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 31: रावण का माहिष्मतीपुरी में जाना और वहाँ के राजा अर्जुन को न पाकर मन्त्रियों सहित उसका विन्ध्यगिरि के समीप नर्मदा में नहाकर भगवान् शिव की आराधना करना  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  7.31.14-15 
 
 
स तमभ्रमिवाविष्टमुद्‍भ्रान्तमिव मेदिनीम्॥ १४॥
अपश्यद् रावणो विन्ध्यमालिखन्तमिवाम्बरम्।
सहस्रशिखरोपेतं सिंहाध्युषितकन्दरम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  वह पर्वत इतना ऊँचा था कि ऐसा लगता था मानो उसका शिखर बादलों में समा गया है और वो पर्वत पृथ्वी को फाड़कर ऊपर उठा हो। विंध्य के ऊँचे शिखर आकाश में एक रेखा खींचते हुए प्रतीत हो रहे थे। रावण ने उस महान पर्वत को देखा जो अपने हजारों शिखरों से सुशोभित हो रहा था और उसकी गुफाओं में सिंह निवास करते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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