श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 30: ब्रह्माजी का इन्द्रजित को वरदान देकर इन्द्र को उसकी कैद से छुड़ाना और उनके पूर्वकृत पापकर्म को याद दिलाकर उनसे वैष्णव- यज्ञ का अनुष्ठान करने के लिये कहना, उस यज्ञ को पूर्ण करके इन्द्र का स्वर्ग लोक में जाना  »  श्लोक 53-54
 
 
श्लोक  7.30.53-54 
 
 
अगस्त्यं त्वब्रवीद् राम: सत्यमेतच्छ्रुतं च मे॥ ५३॥
एवं राम समुद्भूतो रावणो लोककण्टक:।
सपुत्रो येन संग्रामे जित: शक्र: सुरेश्वर:॥ ५४॥
 
 
अनुवाद
 
  तब श्रीराम ने अगस्त्य मुनि से कहा - "आप कह रहे हैं वो बिल्कुल सच है। मैंने भी विभीषण से पहले ही ये सब सुन लिया था।" फिर अगस्त्य मुनि बोले - "श्रीराम! इस तरह, पुत्र सहित रावण सारे लोक के लिए काँटा था, जिसने देवराज इन्द्र को भी युद्ध में जीत लिया था।"
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे त्रिंश: सर्ग:॥ ३०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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