अगस्त्यं त्वब्रवीद् राम: सत्यमेतच्छ्रुतं च मे॥ ५३॥
एवं राम समुद्भूतो रावणो लोककण्टक:।
सपुत्रो येन संग्रामे जित: शक्र: सुरेश्वर:॥ ५४॥
अनुवाद
तब श्रीराम ने अगस्त्य मुनि से कहा - "आप कह रहे हैं वो बिल्कुल सच है। मैंने भी विभीषण से पहले ही ये सब सुन लिया था।" फिर अगस्त्य मुनि बोले - "श्रीराम! इस तरह, पुत्र सहित रावण सारे लोक के लिए काँटा था, जिसने देवराज इन्द्र को भी युद्ध में जीत लिया था।"
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे त्रिंश: सर्ग:॥ ३०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३०॥