तबसे अधिकांश प्रजाएँ रूपवान होने लगीं। अहिल्या ने उस समय विनम्रता-पूर्वक वचनों द्वारा महर्षि गौतम को प्रसन्न किया और कहा - हे विप्रवर! हे ब्रह्मर्षि! देवराज इंद्र ने आपका ही रूप धारण करके मुझे कलंकित किया है। मैं उन्हें नहीं पहचान पाई थी। इसलिए अनजाने में मुझसे यह अपराध हुआ है, स्वेच्छाचार के वश में होकर नहीं। इसलिए आपको मुझ पर कृपा करनी चाहिए॥ ३९-४०॥