रूपं च ते प्रजा: सर्वा गमिष्यन्ति न संशय:।
यत् तदेकं समाश्रित्य विभ्रमोऽयमुपस्थित:॥ ३८॥
अनुवाद
इस एक रूप-सौंदर्य को लेकर ही इंद्र के मन में यह काम-विकार उत्पन्न हुआ था। अब तेरे इसी रूप-सौंदर्य को समस्त प्रजाएँ प्राप्त कर लेंगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।