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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 30: ब्रह्माजी का इन्द्रजित को वरदान देकर इन्द्र को उसकी कैद से छुड़ाना और उनके पूर्वकृत पापकर्म को याद दिलाकर उनसे वैष्णव- यज्ञ का अनुष्ठान करने के लिये कहना, उस यज्ञ को पूर्ण करके इन्द्र का स्वर्ग लोक में जाना
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श्लोक 35
श्लोक
7.30.35
यश्च यश्च सुरेन्द्र: स्याद् ध्रुव: स न भविष्यति।
एष शापो मया मुक्त इत्यसौ त्वां तदाब्रवीत्॥ ३५॥
अनुवाद
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"जो भी देवराज के पद पर प्रतिष्ठित होगा, वह वहाँ स्थिर नहीं रहेगा। यह शाप मैंने इन्द्रमात्र के लिए ही दिया है।" यह बात ऋषि ने उस समय तुमसे कही थी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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