वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 7: उत्तर काण्ड
»
सर्ग 30: ब्रह्माजी का इन्द्रजित को वरदान देकर इन्द्र को उसकी कैद से छुड़ाना और उनके पूर्वकृत पापकर्म को याद दिलाकर उनसे वैष्णव- यज्ञ का अनुष्ठान करने के लिये कहना, उस यज्ञ को पूर्ण करके इन्द्र का स्वर्ग लोक में जाना
»
श्लोक 24
श्लोक
7.30.24
निर्मितायां च देवेन्द्र तस्यां नार्यां सुरर्षभ।
भविष्यतीति कस्यैषा मम चिन्ता ततोऽभवत्॥ २४॥
अनुवाद
play_arrowpause
देवेन्द्र! सुरश्रेष्ठ! जब उस स्त्री का निर्माण हो गया, तब मेरे मन में यह चिंता उत्पन्न हुई कि यह किसकी पत्नी होगी?
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.