श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 30: ब्रह्माजी का इन्द्रजित को वरदान देकर इन्द्र को उसकी कैद से छुड़ाना और उनके पूर्वकृत पापकर्म को याद दिलाकर उनसे वैष्णव- यज्ञ का अनुष्ठान करने के लिये कहना, उस यज्ञ को पूर्ण करके इन्द्र का स्वर्ग लोक में जाना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  7.30.24 
 
 
निर्मितायां च देवेन्द्र तस्यां नार्यां सुरर्षभ।
भविष्यतीति कस्यैषा मम चिन्ता ततोऽभवत्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  देवेन्द्र! सुरश्रेष्ठ! जब उस स्त्री का निर्माण हो गया, तब मेरे मन में यह चिंता उत्पन्न हुई कि यह किसकी पत्नी होगी?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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