श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 30: ब्रह्माजी का इन्द्रजित को वरदान देकर इन्द्र को उसकी कैद से छुड़ाना और उनके पूर्वकृत पापकर्म को याद दिलाकर उनसे वैष्णव- यज्ञ का अनुष्ठान करने के लिये कहना, उस यज्ञ को पूर्ण करके इन्द्र का स्वर्ग लोक में जाना  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  7.30.22-23 
 
 
ततो मया रूपगुणैरहल्या स्त्री विनिर्मिता।
हलं नामेह वैरूप्यं हल्यं तत्प्रभवं भवेत्॥ २२॥
यस्या न विद्यते हल्यं तेनाहल्येति विश्रुता।
अहल्येत्येव च मया तस्या नाम प्रकीर्तितम्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  तब मैंने रूप-गुणों से युक्त एक स्त्री का निर्माण किया, जिसका नाम अहल्या था। इस संसार में कुरूपता को हल कहते हैं और उससे जो निंदनीयता उत्पन्न होती है, उसे हल्य कहते हैं। जिस स्त्री में हल्य (निंदनीय रूप) नहीं होता, वह अहल्या कहलाती है, इसलिए वह नवनिर्मित स्त्री अहल्या नाम से प्रसिद्ध हुई। मैंने ही उसका नाम अहल्या रखा था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.