वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 7: उत्तर काण्ड
»
सर्ग 29: रावण का देवसेना के बीच से होकर निकलना, देवताओं का उसे कैद करने के लिये प्रयत्न, मेघनाद का माया द्वारा इन्द्र को बन्दी बनाना तथा विजयी होकर सेना सहित लङ्का को लौटना
»
श्लोक 37
श्लोक
7.29.37
यथेष्टं भुङ्क्ष्व लोकांस्त्रीन् निगृह्यारातिमोजसा।
वृथा किं ते श्रमेणेह युद्धमद्य तु निष्फलम्॥ ३७॥
अनुवाद
play_arrowpause
आप अपने शत्रु को बलपूर्वक बंदी बनाकर उसके राज्य का भोग कर सकते हैं, तो इस व्यर्थ के श्रम में आप अपना समय और ऊर्जा क्यों लगा रहे हैं? अब युद्ध का कोई लाभ नहीं है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.