श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 29: रावण का देवसेना के बीच से होकर निकलना, देवताओं का उसे कैद करने के लिये प्रयत्न, मेघनाद का माया द्वारा इन्द्र को बन्दी बनाना तथा विजयी होकर सेना सहित लङ्का को लौटना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  7.29.25 
 
 
विमुक्तकवचस्तत्र वध्यमानोऽपि रावणि:।
त्रिदशै: सुमहावीर्यैर्न चकार च किंचन॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के कवच को बलशाली देवताओं ने युद्ध में नष्ट कर दिया था | परन्तु उन्होंने अपने मन में तनिक भी भय नहीं किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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