श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 28: मेघनाद और जयन्त का युद्ध, पुलोमा का जयन्त को अन्यत्र ले जाना, देवराज इन्द्र का युद्ध भूमि में पदार्पण, रुद्रों तथा मरुद्गणों द्वारा राक्षस सेना का संहार और इन्द्र तथा रावण का युद्ध  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  7.28.30 
 
 
पन्नगै: सुमहाकायैर्वेष्टितं लोमहर्षणै:।
येषां नि:श्वासवातेन प्रदीप्तमिव संयुगे॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  उस रथ पर ऐसे विशाल नागों का आवरण था जिससे रोंगटे खड़े हो जाते थे। उन नागों की सांसों की हवा से संपूर्ण रथ युद्धस्थल में ज्वलित-सा प्रतीत हो रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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