गेयात् पुष्पसमृद्ध्या च शैत्याद् वायोर्गिरेर्गुणात्।
प्रवृत्तायां रजन्यां च चन्द्रस्योदयनेन च॥ १२॥
रावण: स महावीर्य: कामस्य वशमागत:।
विनि:श्वस्य विनि:श्वस्य शशिनं समवैक्षत॥ १३॥
अनुवाद
गीत-संगीत की मधुर ध्वनि, विभिन्न प्रकार के फूलों से भरी प्रकृति, शीतल वायु का स्पर्श, पर्वत की मनमोहक सुंदरता, रात के समय का आगमन और चंद्रमा का उदय – कामदेव के इन सभी उद्दीपकों के कारण महापराक्रमी रावण कामवासना के वश में हो गया और उसने बार-बार लंबी सांसें खींचते हुए चंद्रमा की ओर निहारना शुरू कर दिया।