श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 26: रावण का रम्भा पर बलात्कार करना और नलकूबर का रावण को भयंकर शाप देना  »  श्लोक 12-13
 
 
श्लोक  7.26.12-13 
 
 
गेयात् पुष्पसमृद‍्ध्या च शैत्याद् वायोर्गिरेर्गुणात्।
प्रवृत्तायां रजन्यां च चन्द्रस्योदयनेन च॥ १२॥
रावण: स महावीर्य: कामस्य वशमागत:।
विनि:श्वस्य विनि:श्वस्य शशिनं समवैक्षत॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  गीत-संगीत की मधुर ध्वनि, विभिन्न प्रकार के फूलों से भरी प्रकृति, शीतल वायु का स्पर्श, पर्वत की मनमोहक सुंदरता, रात के समय का आगमन और चंद्रमा का उदय – कामदेव के इन सभी उद्दीपकों के कारण महापराक्रमी रावण कामवासना के वश में हो गया और उसने बार-बार लंबी सांसें खींचते हुए चंद्रमा की ओर निहारना शुरू कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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