श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 25: यज्ञों द्वारा मेघनाद की सफलता, विभीषण का रावण को पर-स्त्री-हरण के दोष बताना, कुम्भीनसी को आश्वासन दे मधु को साथ ले रावण का देवलोक पर आक्रमण करना  »  श्लोक 47-48
 
 
श्लोक  7.25.47-48 
 
 
एष प्राप्तो दशग्रीवो मम भ्राता महाबल:॥ ४७॥
सुरलोकजयाकाङ्क्षी साहाय्ये त्वां वृणोति च।
तदस्य त्वं सहायार्थं सबन्धुर्गच्छ राक्षस॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षसों के प्रधान! मेरे भाई महाबली दशग्रीव यहाँ पधारे हैं और देवलोक पर विजय पाने की आकांक्षा से वहाँ जा रहे हैं। इस कार्य के लिए वे आपको भी अपना सहायक बनाना चाहते हैं; अत: आप अपने बंधु-बांधवों के साथ उनकी सहायता के लिए जाइए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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