श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 25: यज्ञों द्वारा मेघनाद की सफलता, विभीषण का रावण को पर-स्त्री-हरण के दोष बताना, कुम्भीनसी को आश्वासन दे मधु को साथ ले रावण का देवलोक पर आक्रमण करना  »  श्लोक 44-45
 
 
श्लोक  7.25.44-45 
 
 
रावणस्त्वब्रवीद‍्धृष्ट: स्वसारं तत्र संस्थिताम्॥ ४४॥
क्व चासौ तव भर्ता वै मम शीघ्रं निवेद्यताम्।
सह तेन गमिष्यामि सुरलोकं जयाय हि॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण तुम्हें देखकर प्रसन्न हुआ। उसने वहाँ खड़ी अपनी बहन से कहा, "तुम्हारा पति कहाँ है? शीघ्र ही मुझे उसकी ख़बर दो। मैं उसे अपने साथ लेकर देवलोक पर विजय प्राप्त करने जाऊँगा।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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