श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 22: यमराज और रावण का युद्ध, यम का रावण के वध के लिये उठाये हुए कालदण्ड को ब्रह्माजी के कहने से लौटा लेना, विजयी रावण का यमलोक से प्रस्थान  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  7.22.30 
 
 
मुञ्च मां साधु धर्मज्ञ यावदेनं निहन्म्यहम्।
नहि कश्चिन्मया दृष्टो बलवानपि जीवति॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘धर्मज्ञ! आप मुझे छोड़ दीजिये। मैं इसे अवश्य मार डालूँगा। जिसे मैं देख लूँ, वह कोई बलवान् होनेपर भी जीवित नहीं रह सकता॥ ३०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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