श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 17: रावण से तिरस्कृत ब्रह्मर्षि कन्या वेदवती का उसे शाप देकर अग्नि में प्रवेश करना और दूसरे जन्म में सीता के रूप में प्रादुर्भूत होना  »  श्लोक 43-44
 
 
श्लोक  7.17.43-44 
 
 
एषा वेदवती नाम पूर्वमासीत् कृते युगे।
त्रेतायुगमनुप्राप्य वधार्थं तस्य रक्षस:॥ ४३॥
उत्पन्ना मैथिलकुले जनकस्य महात्मन:।
सीतोत्पन्ना तु सीतेति मानुषै: पुनरुच्यते॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  वेदवती सत्ययुग में प्रकट हुई थीं। त्रेतायुग आने पर रावण का वध करने के लिए वे मिथिला नरेश जनक के कुल में सीता के रूप में अवतरित हुईं। सीता का नामकरण सीता (हल जोतने से भूमि पर बनी हुई रेखा) से उत्पन्न होने के कारण हुआ है। मनुष्य इस देवी को सीता कहते हैं।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे सप्तदश: सर्ग: ॥ १ ७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें सत्रहवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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