श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 14: मन्त्रियों सहित रावण का यक्षों पर आक्रमण और उनकी पराजय  »  श्लोक 26-27
 
 
श्लोक  7.14.26-27 
 
 
स वार्यमाणो यक्षेण प्रविवेश निशाचर:।
यदा तु वारितो राम न व्यतिष्ठत् स राक्षस:॥ २६॥
ततस्तोरणमुत्पाटॺ तेन यक्षेण ताडित:।
रुधिरं प्रस्रवन् भाति शैलो धातुस्रवैरिव॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  जब राक्षस निशाचर यक्ष के रोकने पर भी नहीं रुका और द्वार के अंदर प्रवेश कर गया, तो द्वारपाल ने फाटक के एक स्तंभ को उखाड़कर उस पर दे मारा। उसके शरीर से रक्त की धारा बहने लगी, मानो किसी पर्वत से गेरू के रंग से मिला हुआ जल गिर रहा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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