श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 111: रामायण- काव्य का उपसंहार और इसकी महिमा  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  7.111.5 
 
 
अपुत्रो लभते पुत्रमधनो लभते धनम्।
सर्वपापै: प्रमुच्येत पादमप्यस्य य: पठेत्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  इसके पाठ से संतानहीन को संतान और धनहीन को धन की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति प्रतिदिन इसके एक चरण का भी पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है॥ ५॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.