श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 111: रामायण- काव्य का उपसंहार और इसकी महिमा  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  7.111.25 
 
 
एवमेतत् पुरावृत्तमाख्यानं भद्रमस्तु व:।
प्रव्याहरत विस्रब्धं बलं विष्णो: प्रवर्धताम्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार, इस प्राचीन कथा को आप लोग विश्वास के साथ पढ़ें और इसका पाठ करें। आपका कल्याण हो, और भगवान विष्णु की शक्ति बढ़ती रहे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे एकादशाधिकशततम: सर्ग:॥ १११॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें एक सौ ग्यारहवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ १११॥
॥ उत्तरकाण्डं सम्पूर्णम् ॥
॥ श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणं सम्पूर्णम् ॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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